मुंह का कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अगर इसका पता समय रहते लग जाए तो इसका इलाज आसान होता है और मरीज के बचने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है। चूंकि मुंह का कैंसर शरीर के बाहरी हिस्से में होता है, इसलिए इसकी पहचान दूसरी तरह के आंतरिक कैंसर की तुलना में जल्दी हो सकती है।
कैसे पता चलता है मुंह के कैंसर का?
मुंह के कैंसर की जांच का पहला कदम होता है क्लिनिकल एग्जामिनेशन। इसमें डॉक्टर मरीज के मुंह और गले की सावधानी से जांच करते हैं। वह किसी असामान्य घाव, सफेद या लाल धब्बे, सूजन या गांठ जैसी चीजों पर ध्यान देते हैं। यह जांच एक प्रारंभिक पहचान देने में सहायक होती है, लेकिन अगर कैंसर की पुष्टि करनी हो तो बायोप्सी करना जरूरी होता है। बायोप्सी में टिश्यू का सैंपल लेकर माइक्रोस्कोप से जांच की जाती है ताकि पता चल सके कि कोशिकाएं कैंसरग्रस्त हैं या नहीं।
नई तकनीकें जो पहचान को आसान बनाती हैं
आजकल कैंसर की पहचान के लिए कई उन्नत तकनीकें उपलब्ध हैं जो न सिर्फ जल्दी परिणाम देती हैं, बल्कि दर्दरहित भी होती हैं। फ्लोरोसेंस इमेजिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक और लार के जरिए की जाने वाली जांच अब मुंह के कैंसर के शुरुआती लक्षणों को जल्दी पकड़ सकती हैं। ये तकनीकें उन क्षेत्रों में बेहद कारगर हैं जहां डॉक्टरों की कमी होती है या इलाज की सुविधाएं सीमित हैं।
नई दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमोद कुमार के अनुसार, लॉलीपॉप टेस्ट या स्वाब टेस्ट जैसी जांच पद्धतियां अब कैंसर की पहचान लार के नमूने से करने में सक्षम हैं। यह एक आसान, सटीक और तेज तरीका है जो शुरुआती चरण में ही संकेत दे सकता है कि किसी व्यक्ति को मुंह का कैंसर है या नहीं।
शुरुआती जांच क्यों है जरूरी?
अगर मुंह के कैंसर का पता पहले चरण में ही लग जाए तो मरीज के पांच साल तक जीवित रहने की संभावना 80 से 90 प्रतिशत होती है। लेकिन यदि यह बीमारी दूसरे अंगों तक फैल जाती है तो यह दर घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो जाती है। इसलिए डॉक्टरों की सलाह है कि हर छह महीने या साल में कम से कम एक बार मुंह और दांतों की जांच जरूर करानी चाहिए।
रिसर्च के अनुसार, जो लोग नियमित रूप से डेंटल चेकअप कराते हैं, उनमें मुंह के कैंसर की पहचान जल्दी हो जाती है और उनकी जान बचने की संभावना भी ज्यादा होती है। इसके विपरीत, जो लोग लक्षणों को नजरअंदाज करते हैं, उनके लिए इलाज मुश्किल और लंबा हो जाता है।
किन लक्षणों को नहीं करना चाहिए नजरअंदाज
मुंह का कैंसर धीरे-धीरे विकसित होता है, लेकिन इसके कुछ शुरुआती संकेत ऐसे होते हैं जिन्हें अगर नजरअंदाज किया जाए तो स्थिति बिगड़ सकती है। जैसे:
- मुंह में ऐसा घाव जो लंबे समय तक न भरे
- सफेद या लाल रंग के दाग
- गालों के अंदर सूजन या गांठ
- आवाज में बदलाव
- किसी दांत के पास लगातार दर्द
- निगलने या चबाने में परेशानी
अगर इनमें से कोई भी लक्षण नजर आए, तो तुरंत किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
आखिरी चरण में क्या होता है?
यदि मुंह के कैंसर का पता तीसरे या चौथे चरण में चलता है, तो उसका इलाज जटिल हो जाता है। मरीज को सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी जैसी जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ सकता है। इनका असर शरीर और मानसिक स्थिति दोनों पर होता है। कई मामलों में सर्जरी के बाद बोलने और खाने की क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष
मुंह के कैंसर से बचाव का सबसे बड़ा तरीका है— समय पर उसकी पहचान और इलाज। नई तकनीकों की मदद से अब कैंसर की जांच आसान हो गई है। लॉलीपॉप टेस्ट जैसे नए विकल्प जांच प्रक्रिया को और भी आसान बना रहे हैं। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह साल में कम से कम एक बार मुंह और दांतों की जांच जरूर करवाए और किसी भी लक्षण को हल्के में न ले। समय रहते कदम उठाने से न सिर्फ बीमारी का पता चल सकता है बल्कि जान भी बचाई जा सकती है।